आज फिर वक्त हाथों से रेत सा फिसल गया।
आज के वक्त को खुद मैं भी जाने देना चाहूँ,
पानी की तेजी से इसे स्वयं बहा देना चाहूँ।
कल वक्त रोकेंगे अपने समय पर,
जब मुस्कुरा कर मिलेंगे खुद से पलट कर।
जो मैं आज हूँ वो कल तो नहीं रहना है,
कल की तलाश में यूँ ही नहीं बहना है।
कुछ समय और चंद लम्हों की छड़ी है,
इंतज़ार खत्म बस इम्तहानों की घड़ी है।
जितना खुद से मिलना हुआ उतना इतराना आया,
अपने जीवन के नए अंदाज का फ़साना आया।
आज को याद कर कल खुद में गर्व करेंगे,
इंसान अलग हैं भई थोड़ा तो हट के चलेंगे।
वक्त की तलाश में वक्त से अजनबी भी ना रहेंगे,
जैसा चाहेंगे वैसा खुद में ढलेंगे,
क्योंकि वक्त किसी के पास ज़्यादा ना रहा,
जो है वो भी जाता सा रहा है।
यूँ ही थोड़ी रुकेंगे, हर पल को जीते चलेंगे।
वक्त वक्त की बात है, कुछ से सीखेंगे कुछ से सबक लेते चलेंगे।
वक़्त ही तो नही है वक़्त के लिए
ReplyDeleteVery nice line
ReplyDeleteप्रिया जी!कविता की सुन्दर पंक्तियां सचमुच मन को आह्लादित कर देतीं हैं.जीवन को सकारात्मक रुख की ओर लेकर चलने की और पूर्ण आत्मविश्वास के साथ मानसिक संबल प्राप्त करने की दिशानिर्देशक पंक्तियां"जो मैं आज हूँ कल तो नहीं रहना है" और "इंसान अलग है भई थोड़ा हटके चलेंगे"जीवन को एक अलग ही आयाम देतीं हैं.बधाई इन मोहक भावनाओ के लिए.
ReplyDeleteआभार🙏😊
Deleteअद्भुत
ReplyDeleteBahut badhiya didi
ReplyDelete