एक प्रतिनिधि के तौर पर किस प्रकार से कार्य किया जाए जिसके माध्यम से देश कृषि के क्षेत्र में अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सके, रिपोर्ट के आधार पर निम्न है:-
कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की आधारशिला एवम् ग्रामीण जनसंख्या में 70% के जीविकोपार्जन के साधन के साथ विदेशी व्यापार का मूल स्त्रोत है। कृषि के माध्यम से राष्ट्रीय आय का लगभग 20-30% प्राप्त होता है। कृषि व्यवसाय ना होकर देश में जीवनयापन का साधन भी माना जाता है।
कृषि द्वारा राष्ट्रीय आय में निभाई जाने वाली भूमिका :-
खाद्यानो की आपूर्ति
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार एवम् विदेशी मुद्रा अर्जन का साधन,
राज्य सरकारों की आय का प्रमुख स्रोत
आर्थिक विकास में साधनों का आधार
यातायात मूल्य स्थिरता कारक
व्यापार एवम् वित्त व्यवस्था का स्त्रोत
राजनीतिक व सामाजिक रूप से महत्वपूर्ण,
पशुपालन के डेयरी उद्योग की समृद्धि कृषि पर आधारित है।
भारतीय कृषि की बाधाएं :-
देश में कृषि आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण स्थान रखते हुए भी पिछड़ी हुई है। इसके पीछे कुछ निम्न बाधाएं हैं।
1 प्राकृतिक बाधाएं - मानसूनी अर्थव्यवस्था, कीड़े मकौड़े तथा पौधों की बीमारियां, भूमि कटाव से उर्वरा शक्ति का ह्वास इत्यादि।
2 आर्थिक बाधाएं - वित्तीय साधनों का अभाव, वैज्ञानिक यंत्रों एवम उपकरणों का अभाव रासायनिक खादों के उपयोगों की जानकारी का अभाव, सिंचाई साधनों का अभाव, उत्तम बीजों व कीटाणुनाशक औषधियों का अभाव।
3 संगठनात्मक बाधाएं - खेतों का उपखंडन एवम उपविभाजन, दोषपूर्ण भूमि व्यवस्था एवम् भूमि सुधार की धीमी गति, कृषि विशेषज्ञों तथा प्रशिक्षित कर्मचारियों का अभाव अनार्थिक जोतें।
4) सामाजिक एवम् राजनैतिक बाधाएं - जनसंख्या में तीव्र वृद्धि से कृषि पर बढ़ता जनभार, अशिक्षित रूढ़िवादी व परंपरागत दृष्टिकोण तथा कुछ राजनैतिक कारण भी शामिल हैं।
5) खाद्यान्न पदार्थों में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने हेतु कृषि विकास में सरकार द्वारा किए निरंतर प्रयासों के कारण ही आज देश खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर है। किंतु कृषि विकास को बढ़ावा देने हेतु अभी आधुनिक बदलावों के समावेश तथा कृषकों के मध्य जागरूकता पैदा करने के साथ ही कृषि के माध्यम से व्यवसाय हेतु प्रेरणा और जानकारी देने के कार्य को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
6) प्रोद्योगिकी क्षेत्रों में सिंचाई साधनों का विकास, उन्नत बीज, रासायनिक खाद व कृषि के वैज्ञानिक उपकरणों के उपयोग में विस्तार की नीतियों पर गंभीरता से ध्यान देने की आवश्यकता है।
7) वैज्ञानिक कृषि द्वारा कम से कम समय में अधिकाधिक कृषि उत्पादन तथा मांग एवम् पूर्ति के अंतराल को बांटना, जिसके अंतर्गत उर्वरकों का बढ़ता प्रयोग कीटाणुनाशक दवाओं, मशीनों, उन्नत बीजों सिंचाई के साधनों आदि को विशेष बढ़ावा देने का समावेश किया गया है। लघु योजनाओं पर जोर, बहुफसलीय कार्यक्रम, पौधों का संरक्षण, भूमि सुधार एवम् भू संरक्षण, खाद्य फसलों के विस्तार पर बल, कृषि विकास हेतु संस्थाओं के माध्यम से कृषि विकास को बढ़ावा, कृषि का यंत्रीकरण व उन्नत उपकरणों के उपयोग को बढ़ावा, कृषकों को उचित मूल्य की गारंटी, वाणिज्यिक फसलों का विकास तथा पशुपालन विकास।
8) इसके अलावा जोतों की चकबंदी के माध्यम से भूमि के अपखंडन को कम करते हुए एक बड़े भूभाग के निर्माण हेतु कृषकों को प्रेरित किया जाए, बड़े भूभाग में जितने कृषक कार्यरत हों उन्हें सरकार अथवा कृषि संस्थानों के माध्यम से किराए पर उपकरण एवम् उन्नत बीजों जैसी आवश्यक वस्तुएं मुहैया कराई जाएं, तथा कृषि के माध्यम से उत्पन्न पैदावार को उचित मूल्य पर किसानों से खरीदा जाए, ऐसे में न सिर्फ पैदावार अच्छी होगी, बल्कि कम खर्च पर बड़े भूभाग पर अधिक मुनाफा होने से किसानों को भी लाभ प्राप्त होगा। इस प्रक्रिया को हम सामूहिक कृषि के रूप में जानते हैं जिसका उपयोग सर्वप्रथम 1990 में सोवियत रूस के द्वारा किया गया था।
इस व्यवस्था की सबसे बड़ी खासियत है की इसमें राज्य की संपत्ति होती है, भूमि का भूभाग बड़ा होने से लाभ अधिक मिलता है तथा उन्नत तकनीकों का प्रयोग आसान हो जाएगा।
यह व्यवस्था सहकारी कृषि व्यवस्था से अलग है, क्योंकि इसमें सरकार का हस्तक्षेप उतना अधिक नहीं होता है, जिससे किसान को अपनी भूमि के अधिग्रहण का भी डर नहीं सताता और उसे अपनी ही भूमि में आसानी से रोज़गार प्राप्त होता है।
Soil health card के माध्यम से भूमि की उर्वरता की जांच एवम् उसके आधार पर उर्वरकों का प्रयोग, वर्मी कंपोस्ट खाद व नीम कोटेड यूरिया जैसे प्राकृतिक तौर पर निर्मित उर्वरकों के प्रयोग की जानकारी हो ताकि कृषि अपशिष्ट का उपयोग हो सके। इसके साथ ही किसान क्रेडिट कार्ड, प्रधानमंत्री किसान समान निधि, इत्यादि सरकारी योजनाओं एवम् तकनीकों की जानकारी से किसानों को अवगत कराना।
इसके अलावा कृषि द्वारा उत्पन्न कचरे के निपटान पर भी ध्यान देना आवश्यक है, जिसमें पराली एक मुख्य समस्या है। इसके लिए हैप्पी सीडर जैसी व्यवस्थाओं को लागू करना चाहिए।
कमर्शियल फसलों को बढ़ावा देने हेतु उन्नत किस्म के उपकरणों का प्रयोग करते हुए किसानों को संस्थानों के माध्यम से टारगेट दिया जाए जिससे वे व्यापार के माध्यम से भी लाभ प्राप्त कर सकें।
इस प्रकार कृषकों को वाणिज्यिक एवम तकनीकी ज्ञान के माध्यम से, तथा एक दूसरे का साथ देते हुए छोटे भूभागों को मिलाकर बड़े भूभाग का निर्माण, डेयरी उत्पादों को बढ़ावा देने से देश ना सिर्फ राष्ट्रीय स्तर पर, अपितु पैदावार बढ़ने एवम फसलों के सुरक्षित होने की दशा में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी विकसित राष्ट्र बनने की राह पर एक कदम आगे होगा।
सरकार द्वारा समय समय पर योजनाओं के माध्यम से कृषकों को राहत देने का कार्य किया जाता है, किंतु सही जानकारी के अभाव एवम करप्शन की वजह से कृषकों तक लाभ नहीं पहुंच पाता है, ऐसी स्थिति में कृषकों को एक ही स्थान पर पोर्टल के माध्यम से समस्त जानकारी उनकी क्षेत्रीय भाषा में उपलब्ध कराने, एवम् ZCBP के तहत उनकी सुविधा हेतु शिकायत पोर्टल के माध्यम से शिकायत की व्यवस्था की जाए। इसके साथ ही इसके विषय में कृषकों को जागरूक किया जाय ताकि वे योजनाओं का लाभ बिना किसी बिचौलिए के संपर्क में आए प्राप्त कर सकें।
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