शतरंज के खेल सी ये ज़िन्दगानी,
जीने को होती जंग सुहानी।
प्यादों के रूप परेशानियों ने घेरा
अपनी होकर भी चलती केवल अपना फेरा।
अंत तक जा बना जाती कुछ जीत की राहें,
कुछ खत्म हो देती सबक सुहाने,
ना होने की ख़ुशी ना जाने का ग़म हैं देतीं
फिर भी ज़रूरी इनके अस्तित्व की भी कहानी।
शतरंज के खेल सी होती ये ज़िन्दगानी।
हाथी स्वरुप परिवार खड़ा, चलना सिखाये केवल सीधी राह।
घोड़े जैसे साथी कुछ, ढाई कदम बस चलते संग।
ख़ास यार हैं टेढ़े वाले, ऊंट जैसी चलते ये चालें।
शतरंज के खेल सी ये ज़िन्दगानी।
बगल में आधा अंग हो जैसे, ऐसे बैठे रानी प्यारी,
उसकी कोई काट नहीं है, संगत की हर बात निराली,
चारों ओर से रखे निगरानी, चालें उसकी सबपर भारी।
शतरंज जैसी ये ज़िन्दगानी।
राजा स्वरुप हर शक्श यहां है,
धीरे धीरे बढे लाचारी।
किसी एक ने भी हाथ जो छोड़ा,
एकदूसरे के लिए ना होकर स्वार्थ से नाता जोड़ा,
बिगाड़ देगा सारा संसार,
जीत जाएगा कोई और ये वार।
सबका साथ सबका विकास इसे कहते हैं,
जब सब अपने मिलकर रहते हैं।
एक गया तो कमी खलेगी,
ज़िन्दगी फिर भी नहीं रुकेगी।
चलना तो स्वभाव है अपना,
ज़िन्दगी का मतलब ही है गिरना फिसलना और सम्भलना।
खुदगर्ज़ बने तो हार जाओगे,
अपनों के बिन क्या लड़ पाओगे।
समझे जो ये खेल सही से,
जीवन उसका ना रुके कहीं पे।
शतरंज सी ये ज़िन्दगानी,
सुख दुख की होती यही निशानी।।।
(प्रिया मिश्रा)
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