वक्त के निराले खेल।

वक्त के भी खेल निराले, साथ हो तो ज़िन्दगी बना दे।।

ये दुनिया केवल, वक्त का खेल है।

हो वक्त तेरा तो सब अपने वरना सबसे बैर है।

तमाशे की दुनिया है साहब, वक्त में ही होते सब अपने यहाँ,

वक्त नहीं तो मतलबी होती दुनिया यहाँ।


जब मुझे ज़रूरत है, कोई पास नहीं।

जब ज़रूरत होगी मेरी, तब आयेगा ये पल भी याद किसी को याद नहीं।

जानते हुए भी चुप हैं फिर भी,

बस देख रहे तमाशा, बन के अजनबी हम भी।

ज़रूरत में सब छोड़ जाते लोग उसी हाल पे,

जो रहते  वो भी होते बस नाम के।


फिर भी है ज़िद है कुछ पाने की,

देखते हैं कब तक चलती है हम पर मनमानी बेकार ज़माने की।

कौन किसका अपना है ये वक्त बताता है।

फरेबी लोगों के बीच कौन अपना साथ निभाता है।

वक्त वक्त का खेल है सब,

वरना कौन कितना किसको सह पाता है।

इसीलिए तो वक्त के भी खेल निराले, साथ हो तो ज़िन्दगी बना दे।।।     


                 (प्रिया मिश्रा)

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