प्रथा जातिवाद की।

प्रथा कुछ ऐसी चली जातिवाद की,

भेदभाव के श्रंगार की,

ह्रदय के बँटवारे की।

कट्टर होती नाम मजहब के,

मुस्लिम, ईसाई, सिक्ख, हिन्दू के नाम पर फैलते नारों की।

हर शहर हर डगर में होते विवाद की,

प्रथा कुछ ऐसी चली जातिवाद की।


ऊँच नीच फैलाने की,

व्यक्तियों के अपमान की,

बढ़ते आतंकवाद,

और हो रहे नरसंहार की।

लोगों के बीच फैली अनैतिकता,

इंसानों द्वारा इंसानो के ही दुर्व्यवहार की,

प्रथा कुछ ऐसी चली जातिवाद की।


कलंक हैं वो इंसानियत पर,

लगाया ना मरहम जिसने अपनों के ज़ख्मों पर।

 ईमान को भूल जो,

ऐसे जिए ऐसे ही मरेंगे पर बनेंगे नहीं इंसान वो।

इंसानियत नाम की चीज़ नहीं,

बनी ऐसी दुर्दशा है संसार की।

प्रथा ऐसी एक जातिवाद की।

लोगों को देखा मैंने रंग बदलते,

हिंसा फैला कर कटते और मरते।

आने वाला कल ना जाने कैसा होगा,

एकता की मिसाल और महान बनेगा या इस प्रथा की बलि चढ़ेगा।

प्रथा ही ऐसी बनी इस जातिवाद की,

सम्मान के लिए ही पैदा हुई कहानी असम्मान की।.  


                                       (प्रिया मिश्रा)

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रिश्ता इंसानियत का।

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